आसमाँ साहिल समुंदर और मैं खुलता फिर यादों का दफ़्तर और मैं चार सम्तें आईना सी हर तरफ़ तुम को खो देने का मंज़र और मैं मेरा उजला-पन नए अंदाज़ में तेरी बख़्शिश मैली चादर और मैं एक मूरत में तजरबे नित-नए कितने बे-कल मेरा आज़र और मैं खुलते हैं असरार अजब आलाम में बंद होता वो हर इक दर और मैं रात इक तारीक पिंजरा यास का फ़ड़फ़ड़ाता एक पैकर और मैं