फ़ज़ा का रंग निखरता दिखाई देता है है शब तमाम कि सपना दिखाई देता है लहू का रंग है मिट कर भी रंग लाएगा उफ़ुक़ का रंग सुनहरा दिखाई देता है वो जिस ने धूप के मेले को छत मुहय्या की सड़क पे उस का बसेरा दिखाई देता है मैं कौन हूँ कि है सब काँच का वजूद मिरा मिरा लिबास भी मैला दिखाई देता है सराब लब पे सजाए हर एक फिरता है मुझे तो शहर भी सहरा दिखाई देता है तने को छोड़ के पत्तों को थामने वालो तुम्हें शजर भी तमाशा दिखाई देता है अभी से कश्तियाँ साहिल पे ले चले लोगो अभी से तुम को किनारा दिखाई देता है वो सौंप जाता है मुझ को हवा के हाथों में उसी का मुझ को सहारा दिखाई देता है