आँसू भी वही कर्ब के साए भी वही हैं हम गर्दिश-ए-दौराँ के सताए भी वही हैं क्या बात है क्यूँ शहर में अब जी नहीं लगता हालाँकि यहाँ अपने पराए भी वही हैं औराक़-ए-दिल-ओ-जाँ पे जिन्हें तुम ने लिखा है नग़्मात-ए-अलम हम ने सुनाए भी वही हैं ऐ जोश-ए-जुनूँ दर्द का आलम भी वही है ऐ वहशत-ए-जाँ दर्द के साए भी वही हैं देखा है जिन्हें आह-ब-लब चाक-गरेबाँ हर दाग़-ए-अलम दिल में छुपाए भी वही हैं सौ रंग बिखेरेंगे मोहब्बत के शगूफ़े 'गुलनार' चमन में हमें लाए भी वही हैं