आँसुओं के तूफ़ाँ में बिजलियाँ दबी रखना सर्द सर्द आहों में गर्मियाँ दबी रखना कैफ़ियत ग़म-ए-दिल की हो अयाँ न चेहरे से पर्दा-ए-तबस्सुम में तल्ख़ियाँ दबी रखना कौन सुनने वाला है बे-हिसों की दुनिया में अपने ग़म की सीने में दास्ताँ दबी रखना किस क़दर अनोखा है शेवा अहल-ए-दुनिया का मीठी मीठी बातों में तल्ख़ियाँ दबी रखना ख़ूब है तुम्हारा भी ये कमाल-ए-फ़न 'अख़्तर' सादा सादा शेरों में शोख़ियाँ दबी रखना