आँसुओं से दिल के इन दाग़ों को धो लेता हूँ मैं दर्द जब हद से गुज़र जाता है रो लेता हूँ मैं जब सताती है किसी की याद तन्हाई के वक़्त आँसुओं के हार पलकों से पिरो लेता हूँ मैं शिद्दत-ए-एहसास-ए-ग़म से जब भी घबराता है दिल आँसुओं में अपनी आहों को डुबो लेता हूँ मैं दर्द-ए-उल्फ़त दर्द-ए-दुनिया और ये नन्हा सा दिल एक कूज़े में समुंदर को समो लेता हूँ मैं वहशतें वीरानियाँ जिस दम सताती हैं मुझे याद के तकिए पे सर रख कर के सो लेता हूँ मैं वहशत-ए-दिल का ये आलम है कि दुश्मन हो या दोस्त जो भी मिल जाता है उस के साथ हो लेता हूँ मैं हाए वो लम्हे अज़िय्यत-कोश 'हैरत' क्या कहूँ जब ख़मोशी में ज़बाँ होते हैं रो लेता हूँ मैं