अब अदा हम से नमाज़-ए-ज़िंदगी होती नहीं दिल जलाने से भी अब तो रौशनी होती नहीं ज़िंदगानी इस क़दर बे-कैफ़ है कुछ इन दिनों उन के आ जाने से भी अब तो ख़ुशी होती नहीं तेज़ हो जाती थी धड़कन आते ही तेरा ख़याल नाम तेरा सुन के भी अब सनसनी होती नहीं हुस्न पे मरती है दुनिया जिस पे आता है ज़वाल हम से ऐसी चंद रोज़ा आशिक़ी होती नहीं यूँ तो हो जाती हैं पूरी धीरे धीरे ख़्वाहिशें जिस की हम को चाह है बस इक वही होती नहीं प्यार जिस ने जितना माँगा उस को इतना दे दिया क्या ख़ज़ाना है कि उस में कुछ कमी होती नहीं ज़ब्त-ए-ग़म की सरहदों को हम ने 'हैरत' छू लिया ग़म हों चाहे कितने आँखों में नमी होती नहीं