आते हैं पहले लब पे सवालात ख़ुद-बख़ुद फिर हम को सूझते हैं जवाबात ख़ुद-बख़ुद सोचों में अपने आप उतरती है रौशनी जलती है दिल में मशअ'ल-ए-जज़्बात ख़ुद-बख़ुद जब तक न लेंगे फ़हम-ओ-फ़रासत से काम हम बदलेगी कैसे सूरत-ए-हालात ख़ुद-बख़ुद क़स्र-ए-तसव्वुरात में जब से मुक़ीम हैं होती है रोज़ उन से मुलाक़ात ख़ुद-ब-ख़ुद तनवीर जिन की है मिरे इक एक लफ़्ज़ में नाज़िल हुई हैं मुझ पे वो आयात ख़ुद-ब-ख़ुद चमका है किस की याद का सूरज ख़याल में रौशन हुआ है शहर-ए-ख़यालात ख़ुद-ब-ख़ुद 'शाहिद' इसी का नाम है तौफ़ीक़-ए-एज़दी निकला ज़बाँ से हर्फ़-ए-मुनाजात ख़ुद-ब-ख़ुद