आते ही जवानी के ली हुस्न ने अंगड़ाई इस सम्त गिरी बिजली उस सम्त क़ज़ा आई जिस सम्त से गुज़रा हूँ आवाज़ यही आई दीवाना है दीवाना सौदाई है सौदाई भूले ही से आ जाओ महकी हुई रातें हैं बरसात का मौसम है डसती हुई तन्हाई सच्चाई के दीवाने चढ़ते हैं सलीबों पर सदियों से ज़माने में ये रस्म चली आई आलाम-ओ-मसाइब का चढ़ता हुआ दरिया है ऐ जोश-ए-तवानाई ऐ जोश-ए-तवानाई अब कौन सुने बातें बहके हुए वाइ'ज़ की चलते हैं 'शफ़क़' हम तो वो काली घटा आई