सोने की कोशिशें तो बहुत की गईं मगर

सोने की कोशिशें तो बहुत की गईं मगर
क्या कीजिए जो नींद से झगड़ा हो रात भर

मैं ने ख़ुद अपना साया ही बाँहों में भर लिया
उस का ख़ुमार छाया था मुझ पे कुछ इस क़दर

आँखों में चंद ख़्वाब थे और दिल में कुछ उमीद
जलता रहा मैं आग की मानिंद उम्र भर

क्यों कोई उस पे डाले नज़र एहतिराम की
कहलाए इल्म-ओ-फ़न में जो यकता न मो'तबर

पल में तमाम हो गया क़िस्सा हयात का
उस की निगाह मुझ पे रही इतनी मुख़्तसर

दुश्वारियों से ज़िंदगी आसाँ हुई मिरी
दुश्वारियों का ख़ौफ़ गया ज़ेहन से उतर

हम ने सुख़न में कोई इज़ाफ़ा नहीं किया
गेसू ग़ज़ल के सिर्फ़ सँवारे हैं उम्र भर

इल्म-ओ-हुनर मिले हैं मगर तेरे सामने
पहले भी बे-हुनर थे 'अमन' अब भी बे-हुनर


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