आते जाते हुए हर शख़्स को तकते क्यों हो By Ghazal << अपने अज्दाद की ख़ू बू आए मुझे न ढूँड चमन की हसीं ब... >> आते जाते हुए हर शख़्स को तकते क्यों हो गुंजलक हैं सभी तहरीरें तो पढ़ते क्यों हो सिर्फ़ सन्नाटा वहाँ राह तका करता है बे-सबब शाम से ही घर को पलटते क्यों हो ये नहीं गाँव कि हर शख़्स ख़ुलूस-आगीं हो शहर में रह के बनावट से बिदकते क्यों हो Share on: