मुझे न ढूँड चमन की हसीं बहारों में

मुझे न ढूँड चमन की हसीं बहारों में
सफ़ीर-ए-दश्त हूँ रहता हूँ ख़ारज़ारों में

हर एक बात की तशरीह तो नहीं होती
कभी तो बात को समझा करो इशारों में

वो कैसा जोश था बच्चों में भी शहादत का
उचक रहे थे जो पंजों के बल क़तारों में

ख़ुशा कि मेरी बसीरत अभी सलामत है
परख रहा हूँ नगीनों को संग-पारों में

बजा कि तुझ को है शौक़-ए-शनावरी लेकिन
है फ़र्क़ झील नदी बहर के किनारों में

उसे ये ख़ौफ़ कि मैं बा-असर न हो जाऊँ
वो मेरा नाम भी लेता नहीं इशारों में

रिया-पसंद मिज़ाजों में दीन क्या 'क़ैसर'
नहीं है जौहर-ए-ईमाँ ही दीन-दारों में


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