आतिश-ए-इश्क़-ए-बला आग लगाए न बने और हम उस को बुझाएँ तो बुझाए न बने रंग-ए-रुख़ उड़ने पे आज जाए तो रोके न रुके लाख वो राज़ छुपाएँ तो छुपाए न बने क्या मज़ा हो न रहे याद जो अंदाज़-ए-जफ़ा मैं कहूँ भी कि सताओ तो सताए न बने ख़ुद वफ़ा है मिरी शाहिद कि वफ़ादार हूँ मैं लाख तुम दिल से भुलाओ तो भुलाए न बने दिल के हर ज़र्रा में है सोज़-ए-मोहब्बत की नुमूद ख़ाक में इन को मिलाऊँ तो मिलाए न बने राह-ए-उल्फ़त ने कुछ ऐसी मिरी सूरत बदली दामन-ए-दश्त छुपाए तो छुपाए न बने दिल को अब ताब-ए-तलाफ़ी ओ मुदावा अभी नहीं चारागर आए तो एहसान उठाए न बने कोई ख़ाका मिरी तस्वीर का खींचे तो सही खिंच भी जाए कोई नक़्शा तो मिटाए न बने मौत क़ाबू की नहीं और न ठिकाना इस का कोई वक़्त उस पे भी आए कि बनाए न बने ऐसे ढब से हो गिला उन की सितम का ऐ 'शौक़' बात कुछ चाहें बनानी तो बनाए न बने