आया है मुझे फिर याद वो ज़ालिम गुज़रा ज़माना बचपन का हाए अकेले छोड़ के जाना और न आना बचपन का वो खेल वो साथी वो झूले वो दौड़ के कहना आ छू ले हम आज तलक भी न भूले वो ख़्वाब सुहाना बचपन का इस की सब को पहचान नहीं ये दो दिन का मेहमान नहीं मुश्किल है बहुत आसान नहीं ये प्यार भुलाना बचपन का मिल कर रोएँ फ़रियाद करें उन बीते दिनों को याद करें ऐ काश कहीं मिल जाए कोई जो मीत पुराना बचपन का