आया है वक़्त दोस्त तिरे इम्तिहान का रखना तू पास अपने दिए हर बयान का मेहमान बन के आया था वो एक शाम को मालूम है पता उसे मेरे मकान का वा'दे पे अपने वो कभी क़ाएम नहीं रहा लगता है मुझ को झूटा वो सारे जहान का करते हैं ए'तिबार ज़माने के लोग भी मीठा है वो जहाँ में तो अपनी ज़बान का देखा जो तेरा चेहरा मुझे प्यार हो गया आशिक़ हुआ हूँ मैं तिरे तिल के निशान का तुझ को नहीं यक़ीं मिरी हर बात पर सनम अब क्या करूँ मैं तेरे बता हर गुमान का