ज़िंदगी तेरे लिए रौशनी लाते हुए लोग जल-बुझे आतिश-ए-इदराक चुराते हुए लोग उठ के देखा तो मैं ख़ुद भी वहाँ मौजूद न था ले गए मुझ को मिरे ख़्वाब से जाते हुए लोग दर्द की गर्द में आँखें भी गँवा बैठे हैं ऐ ग़म-ए-दिल तिरी तस्वीर बनाते हुए लोग उन के बच्चे भी इन्ही गलियों में रहते हैं तो फिर सोचते क्यों नहीं शहरों को जलाते हुए लोग अपने खेतों में अगर आग ही बोई है तो फिर राख हो जाएँगे ये फ़स्ल उठाते हुए लोग