आया था साथ ले के मैं सौग़ात-ए-ख़ैर-ओ-शर पीछे लगी रहीं मगर आयात-ए-ख़ैर-ओ-शर झूटी अना के ज़ो'म में घर से निकल पड़ा ऐ काश भूल जाऊँ वो लम्हात-ए-ख़ैर-ओ-शर बच्चों को दर्स देने का नुस्ख़ा बदल गया देते हैं मौलवी न हिदायात-ए-ख़ैर-ओ-शर सम्तों का कुछ ख़याल न औक़ात ही का इल्म अल्लह रे जुस्तुजू-ए-मक़ामात-ए-ख़ैर-ओ-शर 'मंसूर' अपनी आँखों पे आया न ए'तिबार आए थे मुझ को देने वो ख़ैरात-ए-ख़ैर-ओ-शर