गर्दिश-ए-वक़्त से यूँ आँख मिला कर देखे ग़म में दुनिया के कोई अश्क बहा कर देखे जिस तरह नज़्र किया बर्क़ को मैं ने गुलशन उस तरह कोई नशेमन ही जला कर देखे मुस्कुराता हूँ हर इक ज़ुल्म पे मर्ज़ी के ख़िलाफ़ यूँ ज़माने का कोई दर्द छुपा कर देखे दर्द-ओ-ग़म मक्र-ओ-फ़रेब इस के सिवा कुछ न मिला मैं ने अपनों के बहुत नाज़ उठा कर देखे सारी दुनिया को हँसाता हूँ मैं रो कर 'माहिर' नग़्मा-ए-ग़म कोई इस तरह सुना कर देखे