अब अफ़्सोस करने से क्या होगा हासिल हमारी तबाही में तुम भी थे शामिल क़यामत जो गुज़री है हम पर जहाँ में नहीं इस में अपनी ख़ता कोई शामिल बस आँखों में आए हुए अश्क पी कर दिल-ए-गम-ज़दा पर तू रख सब्र-ए-कामिल है क़ब्ज़ा सभी साहिलों पर अदू का कहीं भी नहीं मेरी कश्ती का साहिल दुआ ही हुई जब न पूरी हमारी दिल अपना है अब तो गुनाहों पे माइल दुआ माँगता है हमेशा ये 'सहगल' बनाना मुझे अपने ही दर का साइल