अब ऐसा भी अंदाज़-ए-बयाँ ठीक नहीं है क़ातिल को कहीं राहत-ए-जाँ ठीक नहीं है बे-जज़्ब-ए-दरूँ आह-ओ-फ़ुग़ाँ ठीक नहीं है जब आग नहीं है तो धुआँ ठीक नहीं है माना कि सितमगर की है रस्सी को बहुत ढील पर इतनी भी अल्लाह-मियाँ ठीक नहीं है तुम उस को कहो जो भी वो सब ठीक है लेकिन हम उस को कहें दुश्मन-ए-जाँ ठीक नहीं है है शहर-ए-सितमगर तो ग़म-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ क्या मक़्तल में तो अंदेशा-ए-जाँ ठीक नहीं है