एक उस का था वो आसरा भी नहीं मेरे शामिल अब उस की रज़ा भी नहीं हाथियों की है यलग़ार चारों तरफ़ और अबाबील का कुछ पता भी नहीं चाँद मेरे इशारे नहीं जानता उँगलियों में मिरी मो'जिज़ा भी नहीं ग़ार तक आ चुके हैं तआ'क़ुब में सब मकड़ियों ने तो जाला बुना भी नहीं 'मशहदी' सर हथेली पे रक्खे रहे अपनी तक़दीर में कर्बला भी नहीं