अब ऐसे चाक पर कूज़ा-गरी होती नहीं थी कभी होती थी मिट्टी और कभी होती नहीं थी बहुत पहले से अफ़्सुर्दा चले आते हैं हम तो बहुत पहले कि जब अफ़्सुर्दगी होती नहीं थी हमें इन हालों होना भी कोई आसान था क्या मोहब्बत एक थी और एक भी होती नहीं थी दिया पहुँचा नहीं था आग पहुँची थी घरों तक फिर ऐसी आग जिस से रौशनी होती नहीं थी निकल जाते थे सर पर बे-सर-ओ-सामानी लादे भरी लगती थी गठरी और भरी होती नहीं थी हमें ये इश्क़ तब से है कि जब दिन बन रहा था शब-ए-हिज्राँ जब इतनी सरसरी होती नहीं थी हमें जा जा के कहना पड़ता था हम हैं यहीं हैं कि जब मौजूदगी मौजूदगी होती नहीं थी बहुत तकरार रहती थी भरे घर में किसी से जो शय दरकार होती थी वही होती नहीं थी तुम्ही को हम बसर करते थे और दिन मापते थे हमारा वक़्त अच्छा था घड़ी होती नहीं थी