सुकूँ अगर है तो बस लुत्फ़ इंतिज़ार में है कि बेबसी तो ब-हर-हाल इख़्तियार में है ये ख़ौफ़ भी है कि अश्कों में ढल न जाए कहीं वो एक आह जो नग़्मे की इंतिज़ार में है थका दिया है ख़ुद अपनी तलाश ने मुझ को कि मेरा अस्ल मिरे झूट के हिसार में है वो दुश्मनों का हो लश्कर कि दोस्तों का हुजूम ये राज़ है जो अभी पर्दा-ए-ग़ुबार में है सदा-ए-रंग की नग़्मागरी से खुल न सका वो एक क़ुफ़्ल जो अब तक लब-ए-बहार में है