अब अंजुमन में वो यारान-ए-ग़म-गुसार कहाँ निगाह-ए-लुत्फ़ कहाँ हम कहाँ बहार कहाँ चले भी आइए आना है तो ख़ुदा के लिए निगाह-ए-शौक़ को अब ताब-ए-इंतिज़ार कहाँ है मै-कदा तो मगर मय-कदे में ऐ साक़ी ख़याल-ए-ख़ातिर-ए-रिंदान-ए-बादा-ख़्वार कहाँ सुरूर जिस से मयस्सर था दीदा-ओ-दिल को किसी की आँखों में बाक़ी वो अब ख़ुमार कहाँ वो बद-नसीब हूँ मेरे नसीब का 'ज़ैदी' चमन में सब्ज़ा कहाँ दश्त में ग़ुबार कहाँ