ऐ चारा-साज़ काहिश-ए-दर्द-ए-निहाँ न पूछ कुछ और पूछ मुझ से मिरी दास्ताँ न पूछ सब कुछ हुआ है दोस्त जहान-ए-ख़राब में अहवाल-ए-गुल्सिताँ करम-ए-बाग़बाँ न पूछ क्या मस्लहत थी किस लिए मजबूर हो गए क्यों रुक गई है आ के लबों पर फ़ुग़ाँ न पूछ गुज़रे हैं लाख हादसे राह-ए-हयात में क्या क्या बताऊँ क़िस्सा-ए-उम्र-ए-रवाँ न पूछ माज़ी के नक़्श ज़ेहन में बाक़ी नहीं रहे था किस जगह चमन में मिरा आशियाँ न पूछ