अब अपनी ज़ात का इरफ़ान होने वाला है ख़ुदा से राब्ता आसान होने वाला है गँवा चुका हूँ मैं चालीस साल जिस के लिए वो एक पल मिरी पहचान होने वाला है इसी लिए तो जलाता हूँ आँधियों में चराग़ यक़ीन है कि निगहबान होने वाला है अब अपने ज़ख़्म नज़र आ रहे हैं फूल मुझे शुऊर-ए-दर्द पशेमान होने वाला है मिरे लिए तिरी जानिब से प्यार का इज़हार मिरे ग़ुरूर का सामान होने वाला है ये चोट है मिरी मुश्किल-पसंद फ़ितरत पर जो मरहला था अब आसान होने वाला है अगर ग़ुरूर है सूरज को अपनी हिद्दत पर तो फिर ये क़तरा भी तूफ़ान होने वाला है बहुत उरूज पे ख़ुश-फ़हमियाँ हैं अब उस की वो अन-क़रीब पशेमान होने वाला है तू अपना हाथ मिरे हाथ में अगर दे दे तो ये फ़क़ीर भी सुल्तान होने वाला है चराग़-ए-दार की लौ माँद पड़ रही है 'नदीम' फिर अपने नाम का एलान होने वाला है