अब और सानेहे हम पर नहीं गुज़रने के गुज़र गए हैं जो लम्हे थे ख़ुद से डरने के न भागने के रहे हम न अब ठहरने के वो लम्हे आए जो आ कर नहीं गुज़रने के बड़े बड़ों ने यहाँ आ के दम नहीं मारा वो आए मरहले अपनी सदा से डरने के ये एक अर्से के चुप की ख़राश और सही सदा के ज़ख़्म तो चुप से नहीं थे भरने के नए सिरे से तअल्लुक़ बनेंगे बिगड़ेंगे कि अब इरादे हैं एक एक बात करने के