जब तक बुलंदियों पे अदब से खड़ी रही ये कामरानी सब की नज़र में बड़ी रही वहशत में वो सदाएँ तो देता रहा मुझे मैं ख़ाक थी तो ख़ाक में ही बस पड़ी रही दिलकश मुझे बनाया मुसव्विर ने जाने क्यों जो बंदिशों के फ़्रेम में हर दम जड़ी रही उस ने कहा कि जिस्म के थ्रो रूह की है राह मैं बाई-पास रोड की ज़िद पर अड़ी रही यूँ तो कलाई पर है सभी के घड़ी मगर बस मैं कहाँ किसी के कोई भी घड़ी रही मैं मोम का बदन लिए चलती रही 'अना' और धूप मेरे सर पे हमेशा कड़ी रही