अब भी अपना ख़याल रक्खा है हम ने ईमाँ सँभाल रक्खा है नूर-ए-मौला नहीं तो क्या है जहाँ ख़ुद को हर शय में ढाल रक्खा है गुम हुआ कब का भीड़ में इंसाँ शहर सारा खँगाल रक्खा है है ये दीवानगी कि मा'सूमी एक तूफ़ान पाल रक्खा है जिस्म की टूटती फ़सीलों में हम ने इंसाँ बहाल रक्खा है ऐ अजल चाव से बहुत हम ने नाम तेरा विसाल रक्खा है देखें 'मोहसिन' जवाब क्या आए उन के आगे सवाल रक्खा है