देखना हो गर बना कर काँच का घर देखना कौन बरसाता है किस जानिब से पत्थर देखना मेरी पलकों पर अटी है गर्द रंज-ओ-कर्ब की दर्द आँखों में समाया है समुंदर देखना अपनी ख़ामुशी बनेगी जब फ़साना ऐ नदीम लोग हाथों में लिए आएँगे पत्थर देखना मैं ही इक हैराँ नहीं हूँ दम-ब-ख़ुद हैं सब यहाँ क़ौम को ले जाएँगे किस सम्त रहबर देखना आप अपने वास्ते रख लें चराग़-ए-आरज़ी बस मिरा शेवा है ज़ुल्मत में उतर कर देखना है वफ़ाओं पर भरोसा रंग लाएँगी ज़रूर जाग उट्ठेगा कभी मेरा मुक़द्दर देखना ख़त्म ख़ून-ए-दिल हुआ कैसे भरें रंग-ए-वफ़ा क्या बना पाएँगे हम तस्वीर-ए-दिलबर देखना ज़ाविए अपनी उड़ानों के बदलने लग गए कौन दम लेता है 'मोहसिन' अब कहाँ पर देखना