अब दिल को इंतिज़ार तिरे फ़ैसले का है और तुझ में ऐब देर तलक सोचने का है कोई नहीं सुनेगा बुराई शराब की हर शख़्स इस दयार में आदी नशे का है अब संग-बारियों का अमल सर्द पड़ गया अब उस तरफ़ भी रंज मिरे टूटने का है ये सारे लोग ख़ुद तो हैं जैसे कोई कमान जो तीर चल रहा है किसी दूसरे का है चेहरे का ख़ोल साफ़ नज़र आ गया 'अक़ील' फिर भी ये शोर है कि क़ुसूर आईने का है