घर न दर कुछ नहीं रहा महफ़ूज़ है ग़नीमत कि सर रहा महफ़ूज़ लुट गया दिल तो क्या रहा महफ़ूज़ उन का ग़म मेरा हौसला महफ़ूज़ रहनुमाओं की हम को हाजत क्या हम ने रखा है हौसला महफ़ूज़ इश्क़-ए-पैहम से चश्म-ए-पुर-नम से कोई दुनिया में कब रहा महफ़ूज़ हम को मुनकिर न तू समझ वाइ'ज़ दिल में हर सम्त है ख़ुदा महफ़ूज़ आप पर मिट के हम रहे गुमनाम आप की हर अदा अदा महफ़ूज़ बार बार उन के दर पे जाने से फ़ासलों ने हमें रखा महफ़ूज़ अब की कैसी चली ये बाद-ए-सुमूम जान महफ़ूज़ न रिदा महफ़ूज़ आज इक जाम-ए-ख़ास मेरे नाम मेरे साक़ी ने रख लिया महफ़ूज़ टूट कर हम बिखर गए होते जो न रखते ये हौसला महफ़ूज़ हर हज़ीमत के बा'द 'फ़रज़ाना' दिल बेचारा कहाँ रहा महफ़ूज़