अब दिलाए मुझे तस्कीन तो आख़िर कोई दे गया दर्द का एहसास मुहाजिर कोई मेरी फ़रियाद-ओ-फ़ुग़ाँ गूँज रही थी लेकिन मेरे घर तक नहीं आया कभी नासिर कोई रंग उड़ता हुआ लगता है हर इक तितली का आ गया बाग़ में क्या फूल का ताजिर कोई अपने दामन में लिए जाता है रस्ते का ग़ुबार छाँव है ही कहाँ ठहरे जो मुसाफ़िर कोई हर घड़ी रक्खी है गर्दन पे सियासी तलवार कैसे ज़िंदा रहे अख़बार का नाशिर कोई बे-रुख़ी इतनी भी अच्छी नहीं होती 'आतिश' कब से है प्यार का तोहफ़ा लिए हाज़िर कोई