अब दू-ब-दू तुझ से बात होवे जो कुछ भी हमारे साथ होवे बाज़ीचा बनी हुई है दुनिया तू चाल चले तो मात होवे चेहरे पे गिरा के अपनी ज़ुल्फ़ें तू हुक्म करे तो रात होवे शरमाए तू कैफ़ियत से लबरेज़ पैमाना काएनात होवे तुझ नूर-सिफ़ात के मुक़ाबिल होवे तो हमारी ज़ात होवे है क़ैद-ए-हयात पेच-दर-पेच मर जाएँ अगर नजात होवे वो शे'र कहो मियाँ-'मुज़फ़्फ़र' आईना शश-जहात होवे