अब हाथों में प्यार है साहब और दिल में तलवार है साहब उल्टी उल्टी रस्में ले कर ये उल्टा संसार है साहब मजबूरी की ज़ंजीरें हैं इशरत का बाज़ार है साहब सब दरिया में डूब रहे हैं सब की नय्या पार है साहब भूके बच्चे जाग रहे हैं माँ घर में बीमार है साहब हम सब ही दरयूज़ा-गर हैं रोटी का व्यापार है साहब दरवाज़े पर आस लगी है सात समुंदर पार हे साहब मंज़िल मंज़िल ढूँड रहा हूँ किस जानिब 'रुख़्सार' है साहब