अब हम ने ये सोचा है कोई ग़म न करेंगे एहसास भी मर जाए तो मातम न करेंगे सीने से लगा रक्खा है जिस दर्द को हम ने बढ़ जाए तो बढ़ जाए इसे कम न करेंगे सो जाएँगे तन्हाई की बाँहों में लिपट कर अब गेसु-ए-शब जाग के बरहम न करेंगे रहना है यहाँ भी हमें जाना है वहाँ भी ये कैसे कहें फ़िक्र-ए-दो-आलम न करेंगे अग़्यार को अहबाब न समझेंगे 'शमीम' अब इस बाब में अब कोई ख़ता हम न करेंगे