आए कुछ सब्र कुछ क़रार आए इस तरह भी कभी बहार आए जुम्बिश-ए-लब वही है तू भी वही फिर मुझे क्यों न ए'तिबार आए या चमन को चमन न कहने दे या वही बो-ए-मुश्क-बार आए शम-ए-महफ़िल को ये ख़बर न हुई किस क़दर उस के जाँ-निसार आए मैं परेशाँ सही उदास सही तेरे चेहरे पे क्यों ग़ुबार आए जब किसी का भी इंतिज़ार नहीं फिर ख़िज़ाँ आए या बहार आए जब हुआ चाक चाक पैराहन काम दामन के तार तार आए आरज़ू हसरतें तमन्नाएँ ज़िंदगी क़ैद में गुज़ार आए आज क्या कह दिया किसी ने 'शमीम' अश्क आँखों में बार बार आए