अब इस मक़ाम पर हो अना का जवाज़ क्या फ़ानी वजूद है तो बक़ा का जवाज़ क्या मेरे सभी चराग़ तो पहले ही बुझ चुके ऐ आँधियो तुम्हारी हवा का जवाज़ क्या अंधों के इस हुजूम पे क्या रौशनी खुले जब क़द्र ही नहीं तो ज़िया का जवाज़ क्या पहचान ही नहीं है तो दस्तक है राएगाँ कब कौन क्यों के बाद सदा का जवाज़ क्या वहशत में कट रही है मिरी ज़िंदगी 'रज़ा' मरने के बाद तेरी शिफ़ा का जवाज़ क्या