अब इस से और इबारत नहीं कोई सादी कि मेरा ख़ास हुनर भी रहा ख़ुदा-दादी ख़ुदा की याद है ख़ल्वत में इस लिए बेहतर कि ख़ुद को जानेगा तन्हाइयों में फ़रियादी तुम उस के बंदे बनो वो कि जो दिखाई न दे इसी में पिन्हाँ है इंसान रम्ज़-ए-आज़ादी वो जाने वाले हों हाज़िर कि आने वाले हों सब एक ख़त में खड़े हैं ब-क़ैद-ए-अबआ'दी बता शराफ़त-ए-दुनिया बता कि खुल जाए करेगा कब तलक इस दिल में ख़ाना-दामादी ये वहम फ़हम-ए-हक़ीक़त नहीं हक़ीक़त है कि बस हक़ीक़त-ए-दुनिया है गिर्या-ए-शादी ये शर्क़-ओ-ग़र्ब के ऊँचे पहाड़ ख़ामी हैं हक़ीक़तन मुझे हासिल है जिस्म-ए-फ़ौलादी हुआ न कोई मिरी ख़ू से ख़ातिर-आशुफ़्ता मिरा वजूद है मिस्दाक़-ए-ख़ाना-आबादी रुके थमे न यहीं तक नया सफ़र 'तमजीद' दिखाए किल्क-ए-सुख़न आगे और उस्तादी