अब इस से बढ़ के मुझे और क्या सुहूलत हो मैं तुझ को याद करूँ साँस की भी फ़ुर्सत हो फ़ज़ा में सिर्फ़ तिरे क़हक़हे रहें बाक़ी और इस ज़मीन पे तेरी तलब सलामत हो तुम्हारे नाम पे झगड़ा हो और इस के बा'द हो ऐसी जंग कि जिस में मिरी हलाकत हो तिरे विसाल के लम्हे बिखर गए मुझ से ख़ुदा करे कि तिरे हिज्र की हिफ़ाज़त हो मैं चाहता हूँ कोई रास्ता सुझाई दे मैं चाहता हूँ मुझे दूसरी मोहब्बत हो लगे हुए हैं समाअ'त की चापलूसी में कोई तो हो कि जिसे बोलने की हाजत हो मैं रोज़ करता हूँ 'साहिर' नई अदाकारी भुला न दूँ जो उसे भूलने की निय्यत हो