अब जो ख़्वाब-ए-गिराँ से जागे हैं पाँव सर पर रखे हैं भागे हैं ख़ार-ए-हसरत भरे हैं आँखों में पाँव में ख़्वाहिशों के तागे हैं ख़ौफ़ है वसवसे हैं लेकिन शुक्र अज़्म-ओ-हिम्मत जो अपने आगे हैं रख़्त-ए-उम्मीद है सफ़र की जाँ साज़-ओ-सामाँ तो कच्चे धागे हैं तुम से मिलना तो इक बहाना है हम तो दर-अस्ल ख़ुद से भागे हैं लाग लागे नहीं लगी 'अहमद' हम जो सोए तो भाग जागे हैं