ऐब जो मुझ में हैं मेरे हैं हुनर तेरा है मैं मुसाफ़िर हूँ मगर ज़ाद-ए-सफ़र तेरा है तेशा दे दे मिरे हाथों में तो साबित कर दूँ सीना-ए-संग में ख़्वाबीदा-शरर तेरा है तू ये कहता है समुंदर है क़लम-रौ में मिरी मैं ये कहता हूँ कि मौजों में असर तेरा है तू ने रौशन किए हर ताक़ पे फ़ुर्क़त के चराग़ जिस में तन्हाइयाँ रहती हैं वो घर तेरा है संग-रेज़े तो बरसते हैं मिरे आँगन में जिस का हर फल है रसीला वो शजर तेरा है मैं तो हूँ संग-ए-हिदायत की तरह इस्तादा हाँ मगर ज़ाब्ता-ए-राहगुज़र तेरा है लाख बे-माया हूँ इतना भी तही-दस्त नहीं मेरी आँखों के सदफ़ में ये गुहर तेरा है मुझ को तन्हाई से रग़बत तुझे हंगामों से प्यार ज़ुल्मत-ए-शब है मिरी नूर-ए-सहर तेरा है डूबते हैं जो सफ़ीने ये ख़ता किस की है तह-नशीं मौज मिरी है तो भँवर तेरा है 'रम्ज़' हर तोहमत-ए-ना-कर्दा से मंसूब सही ये मगर सोच ले उस में भी ज़रर तेरा है