अब कौन बात रह गई ये बात भी गई यानी कभी कभी की मुलाक़ात भी गई कहते हैं वो कि जज़्बा-ए-दिल अब फ़रेब है जब दिल गया तो दिल की करामात भी गई जो कुछ किया वो तू ने किया इज़्तिराब-ए-शौक़ सौ आफ़तें भी आईं मिरी बात भी गई दस्तार आप की जो हुई रेहन-ए-मै-कदा तौबा हमारी क़िबला-ए-हाजात भी गई वादे की कौन रात क़यामत का दिन नहीं आसार-ए-सुब्ह कहते हैं ये रात भी गई माना कि दिन सिधारे 'मुबारक' शबाब के रंगीं तबीअतों से मुलाक़ात भी गई