चौधवाँ उस चंदर का साल हुआ हुस्न में बद्र बा-कमाल हुआ तुझ सा चंचल नहीं ज़माने में रम में ऐ मन हिरन ग़ज़ाल हुआ बाग़-ए-दिल में तू नख़्ल-ए-तूबा है सर्व तुझ क़द से पाएमाल हुआ रात दिन तू रहे रक़ीबाँ-संग देखना तेरा मुझ मुहाल हुआ देख कर तुझ नयन की शोख़ी कूँ थक के सहरा-नशीं ग़ज़ाल हुआ मुर्ग़-ए-दिल के फँसाने को मेरे दाना-ओ-दाम ज़ुल्फ़ ओ ख़ाल हुआ ज़ुल्फ़ की हर शिकन में तुझ मेरा दिल गिरफ़्तार बाल बाल हुआ