अब ख़िज़ाँ आए या बहार आए कोई मौसम तो साज़गार आए हम ने हारी थी इश्क़ की बाज़ी लोग तो हौसले भी हार आए रख के उस दर पे सर उठाते क्या आज ये बोझ भी उतार आए अब वो लम्हे हैं रास्तों के चराग़ तेरी धुन में जो हम गुज़ार आए है ये शो'ला तो कोई बात नहीं दिल अगर है तो फिर क़रार आए 'सोज़' पल पल बदलती दुनिया पर किस तरह दिल को ए'तिबार आए