आँख से टपका जो आँसू वो सितारा हो गया मेरा दामन आज दामान-ए-सुरय्या हो गया उस के जी में क्या ये आई ये उसे क्या हो गया ख़ुद छुपा आलम से और ख़ुद आलम-आरा हो गया बंदा-ए-मअ'नी कहाँ सूरत का बंदा हो गया सोचता हूँ मुझ को क्या होना था मैं क्या हो गया फिर तसव्वुर ने बढ़ा दी नाला-ए-मौज़ूँ की लय फिर सवाद-ए-फ़िक्र से इक शेर पैदा हो गया अब कहाँ मायूसियों में झलकियाँ उम्मीद की वो भी क्या दिन थे कि तेरा ग़म गवारा हो गया जान दे दी मैं ने तंग आ कर वुफ़ूर-ए-दर्द से आज मंशा-ए-जफ़ा-ए-दोस्त पूरा हो गया बरहमन कहता था बरहम शैख़ बोल उठा अहद हर्फ़ के इक फेर से दोनों में झगड़ा हो गया वहदत ओ कसरत के जल्वे ख़िल्क़त-ए-इंसाँ में देख एक ज़र्रा इस क़दर फैला कि दुनिया हो गया बरबरियत की जहाँ में गर्म-बाज़ारी हुई आदमियत की रगों में ख़ून ठंडा हो गया आशियाँ बनने न पाया था कि बिजली गिर पड़ी बाग़ अभी बसने न पाया था कि सहरा हो गया आ गया सैलाब बालीं तक वुफ़ूर-ए-गिर्या से रहम कर या रब कि पानी सर से ऊँचा हो गया इत्तिफ़ाक़-ए-वक़्त था अपना फ़रोग़-ए-आशियाँ जब कोई जुगनू चमक उट्ठा उजाला हो गया दिल खिंचा जितना क़फ़स में आशियाने की तरफ़ दूर इतना ही क़फ़स से आशियाना हो गया हम मुसाफ़िर थे हमारा मुस्तक़र कोई न था रात जब आई जहाँ आई बसेरा हो गया हो गए रुख़्सत 'रईस' ओ 'आली' ओ 'वासिफ़' 'निसार' रफ़्ता रफ़्ता आगरा 'सीमाब' सूना हो गया