अब किसी ख़्वाब की ताबीर नहीं चाहता मैं कोई सूरत पस-ए-तस्वीर नहीं चाहता मैं चाहता हूँ कि रिफ़ाक़त का भरम रह जाए अहद-ओ-पैमान की तफ़्सीर नहीं चाहता में हुक्म सादिर है तो नाफ़िज़ भी करो मेरे हुज़ूर फ़ैसले में कोई ताख़ीर नहीं चाहता मैं चाहता हूँ तुझे गुफ़्तार से क़ाइल कर लूँ बात में लहजा-ए-शमशीर नहीं चाहता मैं मुद्दआ है कि मिरा हक़ मुझे वापस मिल जाए तेरे अज्दाद की जागीर नहीं चाहता मैं