एक आलम पे बार हैं हम लोग आदतन सोगवार हैं हम लोग गर्दिश-ए-पा जुनूँ बढ़ाती है संग-ए-रह की पुकार हैं हम लोग पिछली सब रंजिशों को भूल भी जा अब तिरे ग़म-गुसार हैं हम लोग जानते हैं हुनर मोहब्बत का अहल-ए-दिल में शुमार हैं हम लोग अब हमें लोग हँस के मिलते हैं अब बहुत साज़गार हैं हम लोग हम ने मफ़्हूम को ज़बाँ दी है हर्फ़ का ए'तिबार हैं हम लोग कोई चेहरा तो रौशनी लाए वाहिमों का शिकार हैं हम लोग अब तिरी दोस्ती के क़ाबिल हैं दिल-गिरफ़्ता-ओ-दिल-फ़िगार हैं हम लोग दिल चुराने का काम करते हैं बर-सर-ए-रोज़गार हैं हम लोग एक पल भी सुकूँ नहीं मिलता किस क़दर बे-क़रार हैं हम लोग शहरयारी भी इक नशा है 'अमीर' तेरे हिस्से का प्यार हैं हम लोग