अब कोई चीज़ बाइस-ए-राहत नहीं मुझे यूँ ज़िंदगी से कोई अदावत नहीं मुझे रहता हूँ अजनबी सा गुल-ओ-गुलिस्ताँ में मैं रंग-ओ-बहार से कोई रग़बत नहीं मुझे गिरती हो जिस पे बर्क़ तड़प कर न हम-नशीं उस आशियाँ से कोई भी निस्बत नहीं मुझे रह रह के याद आती हैं तेरी नवाज़िशें ऐ चश्म-ए-नाज़ तुझ से शिकायत नहीं मुझे लेता हूँ छुप के नाम तिरा हसरतों से मैं फिर से मचल न जाएँ ये हसरत नहीं मुझे आदत सी हो गई है तड़पने की ऐ 'निशा' कोई भी हादिसा हो क़यामत नहीं मुझे