चमन का ज़िक्र ही क्या हुस्न-ए-ला-ज़वाल के बाद ख़याल-ए-ख़ुल्द करें क्या तिरे ख़याल के बाद ख़बर नहीं मुझे क्या उन के क़ल्ब पर गुज़री कि शर्मसार हुआ हूँ मैं अर्ज़-ए-हाल के बाद न छोड़ गर्दिश-ए-दौराँ अब एक आलम पर कोई तो हाल हो मेरा शिकस्ता-हाल के बाद कुछ और हो न सकी उन से गुफ़्तुगू आगे कि आ गए थे वो सकते में इक सवाल के बाद निगाह-ओ-दिल का हमारे भी है वही आलम हुआ जो तूर पे नज़्ज़ारा-ए-जमाल के बाद हैं अक्स-ए-पा-ए-निगाराँ पे सज्दा-हा-ए-मुदाम उठा ही करते हैं दस्त-ए-दुआ' हिलाल के बाद वो आज सरहद-ए-लफ़्ज़-ओ-बयाँ से बाहर है 'निशा' मुझे जो मसर्रत हुई मलाल के बाद