अब कोई हुज्जत नहीं इक़रार को इंकार से इश्क़ ने पाली फ़राग़त हुस्न की सरकार से इस अदा-ए-बे-नियाज़ी पर है हैराँ आँख भी आ गए दिल में मगर पूछा न पहरे-दार से गर्द-आलूदा थीं आँखें इंतिज़ार-ए-दोस्त में धुल रही हैं वस्ल में वो आँसुओं की धार से वापसी होगी वहीं पर इस का अंदाज़ा न था नाचता नंगा चला था आदमी जब ग़ार से लफ़्ज़ में जादू नहीं है इक हक़ीक़त है जनाब हम हिफ़ाज़त कर रहे हैं काग़ज़ी तलवार से निकहत-ओ-शादबी-ए-गुल है चमन का इम्तियाज़ आदमी पहचाना जाता है फ़क़त किरदार से मुझ से उस की बद-गुमानी गरचे पोशीदा नहीं बात बनती है 'असर' की बाहमी गुफ़्तार से